मात-पिता प्रभु सम्मान
मात-पिता प्रभु सम्मान
बड़े नसीब वाले वे होते हैं
जो मात-पिता संग रहते हैं
कुछ अलग भाव वे रखते हैं
प्रभु आशीष सदा वे पाते हैं
मात-पिता को वे ईश्वर मानते हैं
उनकी सेवा में प्रभु दर्शन वे पाते हैं
दुखों से वे कोसों दूर रहते हैं
बिन मांगे वरदान वे पा जाते हैं
कुछ ऐसे बदनसीब भी होते हैं
मात-पिता को भोझ समझते हैं
उनकी कुर्बानियों को बुलाते हैं
वृद आश्रम का द्वार उन्हें दिखाते हैं
विधाता की विधि न समझ पाते हैं
तकदीर के द्वार बंद हो जाते हैं
भक्त्ति भावना जब भूल जाते हैं
प्रभु नज़रों में वे गिर जाते हैं
वैसे सब प्रभु के बंदे होते हैं
कुछ समझते, कुछ भूल जाते हैं
जिनके मन प्रभु वास् करते हैं
उनके जलवे बहुत अलग होते हैं
जो माँ को त्याग की मूरत समझते है
पिता को बरगद की छाया वे मानते हैं
मानवता की छवि वे दिखलाते हैं
उनके कर्म ही सृष्टि को संतुलित रखते हैं।