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SHUBHAM SHARMA SHANKHYDHAR

Tragedy

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SHUBHAM SHARMA SHANKHYDHAR

Tragedy

"रवि के पास"

"रवि के पास"

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सर्द सासें ओला बनके हैं जहन में बह रहीं

मन की गर्मी बाजुओं में बौखलाहट कर रही

रुक चुकी बहती पवन अब तो बस हिमपात है

ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है.....


शांत मन है जोश उत्तम हृदय में आघात है

है नशे में सारी दुनिया दुनिया में संताप है

है गगन के पास का मंजर बहलाने को सही

रुक चुका है सारा जीवन अब नहीं कुछ खास है

ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है.....


आयी आंधी उखड़े बूते जग चुकी हैवानियत

क्यों पड़े हैं ख्वाब रूठे क्यों मरी इंसानियत

हैं चमकते आसियाने जो नजर के पास हैं

हैं वो मंजर सारे झूठे जो अभी तक खास हैं

ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है.....


शांत मन से जो मिला है न मिला वो चीखकर

हिल चुके हैं सारे पुरचे पास खुद को देखकर 

रुक चला है सारा प्रकरण हांथ में वो हांथ है

जिसने देखा है अभी तक न किसी का साथ है।

ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है.....



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