रूठती नहीं वो कभी भी ,
ऐसी होती है ये माँ ,
जब चाहे इसको मना लो ,
कितनी भोली होती है माँ |
जानती है सब नाटक बच्चों का ,
फिर भी आँख मूंदती माँ ,
उन्हे नेक इंसान बना कर ,
मन ही मन खुश होती माँ |
उनको बड़ा करने में ,
अपना सारा समय लगाती माँ ,
बिना किसी भेदभाव के ,
सब बच्चों को गले लगाती माँ |
जब बड़े हो छोड़ चले जाते बच्चे ,
तब भी उफ़ ना करती माँ ,
दूर उन्हे गर हो कोई तकलीफ ,
तब भी दुआ मनाती माँ |
ज़र्रा - ज़र्रा अपने जिस्म का ,
हर रोज़ कहीं गलाती माँ ,
स्वर्ग सिधार जाती फिर एक दिन ,
सिर्फ तस्वीरों में रह जाती माँ ||