रूहानी ईश्क़
रूहानी ईश्क़
जिंदगी की छाँव तले , कुछ यूं चले ,कुछ यूं चले
हम तो दीवाने तेरे , जिंदगी को धूप बना कर चले।
छोड़ दिया जमां का उलाहना,जो देगा मुझे हर कोई
बनाकर ईश्क़ को उलाहना , जिंदगी बस जीते चले।
रँगीन - सी है ये रोशनी और निशा -शशि का तेज
सूर्य का तप है ये दिन में, और बहता नीर से तेज।
ये ईश्क़ है ,या शक है , दिल थोड़ा - सा मायूस है
है तो बड़ी चुनौती या फिर सिर्फ है साजिशों का तेज
अनन्त में खोया था, खोया था, और फिर से खो गया
ये मेरा दिल था जनाब फिर भी ,कैसे ये तेरा हो गया।
आँखे खुली है, रजनी का आलम तो देखो जग रहा हूँ
जाने तकिये की लिपट से, कब तलक भोर हो गया है।
सुना है - रातों में अक्सर नींद का पहरा होता है ।
सुना है - दिल अक्सर रहता बिन आँसू के रोता है।
फिर क्यों हैरान है हम ,जब हमारा दिल जाग रहा है
हमारी आँखे जगी है , सिर्फ , सिर्फ शरीर सोता है।
शिशपाल चिनियाँ "शशि"
🙏स्वरचित 🙏