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Kumari Aarti Sudhakar Sirsat

Romance

4  

Kumari Aarti Sudhakar Sirsat

Romance

"निंदियों के किनारों से"

"निंदियों के किनारों से"

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निंदियों के किनारों से, मैंने देखा जो मन बावरे....

तुम हवा बनकर आएं, आकर मेरी साँसों में समाएं....

जगाकर निंदियों को, खोलकर बैठीं जो आँखों को, 

दूर जाते तुम नज़र आएं.... दूर जाते तुम नज़र आएं....

निंदियों के किनारों से.......


इक दिल था मेरे पास वो, अब तेरा होने लगा है....

शायद तुझे पाकर, हाय मुझसे जुदा ये होने लगा है....

इक तेरे ही ख्यालों में, खुद को बैठीं हूँ भूल के....

यूँ ही ख्यालों में तेरा ख्याल आएं....नींद मेरी सजा जाएं....

निंदियों के किनारों से......


रहतीं हूँ तुम्ही में, कहती हूँ तुम्ही से....

हो तुम जहां, सनम, मेरा संसार शुरू होता वहीं से....

करती हूँ यही जतन में, साँसों में मेरी, हरदम तेरा ही प्रवाह रहे....

जिस साँस पर तेरा नाम नहीं....मेरी साँस वहीं रूक जाएं....

निंदियों के किनारों से.......


मैं जब से तेरे ख्वाबों में, रहने लगीं हूँ....

सोती नहीं रात दिन में अब, बस तेरे ध्यान में जगी हूँ....

मेरी साँसों से कोई तुम्हें न छीन ले....

मन ये मेरा, यही सोच के पागल न हो जाएं....यही सोच के पागल न हो जाएं....

निंदियों के किनारों से.......


फिल्म:- "अँखियों के झरोखों से" (1978)

धुन:- अँखियों के झरोखों से

गीतकार:- रविद्र जैन जी

संगीतकार:- रविन्द्र जैन जी



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