रोज़ खिलना है तो
रोज़ खिलना है तो


पुरे हम भी नहीं
पुरे तुम भी नहीं
इस अधूरेपन के साथ हीं
हमें चलना होगा
सूरज की तरह
गर रोज़ खिलना है तो
रोज़ जलना होगा
रोज़ डूबना होगा
कदम लड़खड़ाते हैं तो
उसे लड़खड़ाने दो
अभिलाषाएँ टूटती हैं तो
उसे टूट जाने दो
हारे हुए मन के साथ भी
हमें आगे बढ़ना होगा
फूलों की तरह
गर रोज़ खिलना है तो
रोज़ मुरझाना होगा
रोज़ टूट जाना होगा।