रोटी
रोटी
एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं
रोटी की चाह में इंसान दर-दर ठोकरें खाये।
ये दो जून की रोटी ही घर-द्वार छुड़वाए
ये रोटी ही तो पापी पेट की आग बुझाए
एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।
ये रोटी ही तो मुरझाए चेहरों की हंसी लौटाए
गरीब हो या अमीर रोटी बिन कोई न रह पाए
एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।
ये रोटी ही तो भूखे को आत्म सुख पहुंचाए
रोटी ही किसी को मीत किसी को दुश्मन बनाए
एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।
ये रोटी इंसान से न जाने क्या-क्या कर्म कराए
एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।