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राजेश "बनारसी बाबू"

Abstract Others

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राजेश "बनारसी बाबू"

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रोटी की कहानी उसकी जुबानी

रोटी की कहानी उसकी जुबानी

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मेहरबान कदरदान आपकी खिदमत है आज मस्त गरमा गर्म।

घर की देवी मखमली मदमस्त नूर ए सवाब रोटी अदाकारा 

पनीर_ ए रूखी रोटी सामने ना ठहर?

देख तेरे सामने मैं हूँ बनके एक कहर?

पनीर -तू तो रूखी सूखी सी मामूली रोटी,

मेरे सामने तेरी क्या अदा?

रोटी- तुनक के बोली ए होटल शहजादे ,

तेरी क्या अकड़ ? 

तुझे लोग एक बार निहारे, बिना मेरे तुझे न पहचानते? 

मेरे बिना कोई घर न रहता ?

भूखे गरीब हमें सब खाए? 

देख तू हमें जल जाए?

पनीर- मेरी क्या औकात तुम्हें दिखलाता हूँ? 

रूप हमारे है अनेक मैं तुझे बतलाता हूँ?

मटर पनीर, कढ़ाई पनीर, शाही पनीर ऐसे मेरे कई अनेक रूप 

भी है। 

ए रोटी हठ मत दिखला ?

मेरे सामने तेरे क्या गुरूर है?

रोटी -ए पनीर हममें कितनी वफा है तू क्या समझेगा ?

रोटी कारण झगड़ा होए ?

रोटी बिन केहू ना रहे?

रोटी के कारण हत्या होए ? 

रोटी बिन मानुष घर बार भी छोड़े?

बिन रोटी थाली होए ना पूरा ?

रोटी बिन रहे भोजन अधूरा ?

 पनीर- चल बता तेरा औकात है क्या ?

दो ही चार अपने रूप तो दिखा।?

रोटी थोड़ी घबराई थी हिचकी थी

थोड़ी कपँकपाई थी।

 

रोटी- ऐ पनीर अपने तू औकात में आ?

तू पनीर मैं भी कुछ कम नहीं हूँ?

मैं कामुक और बहुत ही गर्म हूँ।

देख तू मेरे रूप अनेक, मैं रोटी हूँ कई अनेक,

 नान रोटी जब बनता तब बूढ़े बच्चों का मन भरता।

 पराठा लोगन को बहुत सुहाए बिन पराठा रहा न जाए।

 बयारू रोटी भी हमरो रूप खावत लगे बहुत ही खूब।

 लच्छा रोटी जो भी खाए मन को उसे खूब हर्षाए।

 मीठी रोटी जब बन जाए बच्चन के खूब रास आए।

 रूमाली रोटी जब बन बुढ़ जवान के बड़ा सुहाय।

 तंदूरी रोटी भी हमरो रूप हमरो यह पसंदीदा रूप।

 टिक्कड रोटी_ लोगन यह मन से खाए देख यह दिल सुखद हो जाए

 फुल्का भी सबको भाता हर 

घर में यह रोज बन जाता।

 चपाती सबकी पसंद हो जाती घर घर की यह मनपसंद रोटी कह लाती।

और भी मेरे रूप अनेक पूड़ी कचौरी बड़े बड़े 

पनीर का घमंड चूर हो गया शर्म से बिल्कुल चूर हो गया।

देख रोटी इठलाई बलखाई फिर हौले से मुस्कुराई ।

रोटी-पनीर हो न उदास हम तुम बिन ये होटल घर न चल पाई?

हम लोगन में केहूं ना बढ़? 

 हम दोनों हैं भाई भाई।



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