रोम- रोम में भारत माता
रोम- रोम में भारत माता
जब अंधकार छाने लगता है
उम्मीद का दिया डगमगाने लगता है
जब छूटने लगता है अपनों का भरोसा
तभी प्रकृति की किरण
जगमगाती है कहीं दूर
भरोसे का देती है आश्वासन
जो धीरे-धीरे नव जीवन
की रोशनी बिखेरती है
भय और विश्वास के बीच
जीतता सदैव विश्वास ही है.
जन्म लिया जिस माटी में
पले- बढ़े जिस माटी में
माँ जैसा प्रेम मिला जिससे
रज में जिसके सुंदर फूल खिले
जिसकी माटी ने
प्रेम भक्ति की शिक्षा दी
जिसकी माटी में
राष्ट्रभक्ति की दीक्षा ली
माँ से बढ़कर मातृभूमि
माँ ने ही हमको बतलाया
उस पूजित पावन धरा को
कर जोड़ नमन मैं करती हूँ
दिल से पूजन अर्चना करती हूँ
धन्य -धन्य मेरी भारत भूमि
मेरे रोम –रोम में भारत माता
नित मैं उनकी गाथा गाती हूँ
नित मैं उनका वंदन करती हूँ !
