रोम अब भी जल रहा है....
रोम अब भी जल रहा है....


जब रोम जल रहा था
तब नीरो बांसुरी बजा रहा था,
ये तो सब जानते है
पर जो नहीं जान पाई दुनिया
और जो नहीं लिख पाये इतिहासकार
वो था..
उस पागल कवि का क्रांति गीत,
उसकी अधजली कवितायें,
उसके मुरझाये शोकगीत..
जो आज भी जीवित हैं
और जिसने मरने नहीं दिया है
नीरो को,
न ही बुझने दिया उस रोज लगी आग को...
उस रोज,
जो बच गये थे
वो आगे भी जलते
रहे,
सहस्त्राब्दियों तक...
प्रेम में डूबा वो पागल कवि
आज भी लिख रहा है नित नये क्रांति-गीत,
क्योंकि,
दुनिया के
किसी न किसी कोने मे रोम आज भी जल रहा है,
नीरो आज भी बांसुरी बजा रहा है..
और
प्रेम में डूबा वो पागल कवि
आज भी इँतजार मे है
कि अपनी अधजली कविताओं से
वो बचा लेगा रोम को,
और बचा लेगा
उस रोज बचे हुये उन लोगों को भी.... !!