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युद्ध में अकेला नहीं' जाता सिपाही...

युद्ध में अकेला नहीं' जाता सिपाही...

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युद्ध में अकेला नहींं जाता है सिपाही,
साथ जाता है उसका किसान बाप
और उसकी डेढ़ बिसुआ ज़मीन...
साथ जाती है उसकी बूढ़ी माँ 
और उसकी पथराई आँखें...
युद्ध में अकेला नहींं जाता है सिपाही,
साथ जाता है उसका इश़्क उसकी पत्नी,
और तमाम अनसोई रातें...
साथ जाती है उसकी मुस्कान उसकी बिटिया
और उसकी तुतलाती बातें...
युद्ध में अकेला नहीं जाता है सिपा

ही,
साथ जाते हैं उसके यार
साथ जाती है हुस्ना...
साथ जाता है
उसका घर
उसका बैठ़का
उसका खेत 
उसका गाँव
उसकी नीम 
उसकी छांव...
साथ ही जाती है दराज़ों में दफ़्न वो डायरी भी,
और साथ ही जाते हैं उसमे जमा सारे सपने...

युद्ध में अकेला नहींं मरता है सिपाही,
साथ ही मर जाते हैं ये सभी भी!


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