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Neeraj Dwivedi

Abstract

4.0  

Neeraj Dwivedi

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औसत आदमी की त्रासदी

औसत आदमी की त्रासदी

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जब उसे खेत होना था

वह घर हुआ,

जब उसे घर होना था

वह सड़क हुआ...


जब उसे गाँव होना था

वह शहर हुआ,

जब उसे शहर होना था,

वह सहरा हुआ...


दरअसल, यही त्रासदी है 

प्रेम मे डूबे औसत आदमी की..


जब उसे आग होना था

वह इश्क़ हुआ,

जब उसे इश्क़ होना था

तब वह कातिब हुआ...



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