रोज़ एक ख़्वाब टूट जाता है
रोज़ एक ख़्वाब टूट जाता है
रोज़ एक ख़्वाब देखती हूँ मैं,
और रोज़ वो टूट जाता है।
आँखों के आँसू में,
बह जाता है।
देखती रहती हूँ मैं
मेरे ख्वाबों को टूटते हुए
और बहते हुए।
करती हूँ कोशिश की ना टूटे
वो हसीन सा ख़्वाब,
लेकिन कुछ ना कुछ ऐसा
होता है कि वो हसीन
सा ख़्वाब टूट जाता है
और मैं सिर्फ देखती रहती हूँ ।