रंगीन मिज़ाज़
रंगीन मिज़ाज़
फितरत होती जा रही है मेरी रंगों से खेलने की
फ़िर चलो हम माहौल को रंगीन बनाते हैं
कभी इश्क़ का गुलाल अपने गाल पर लगाते हैं,
कभी उमंग और उत्साह में खूब पकवान खाते हैं।
कभी सुनहरा स्वर्ण रखते हैं सहेज़ कर
कभी श्याम की बाँसुरी का आनंद उठाते हैं।
फितरत होती जा रही है मेरी रंगों से खेलने की
फिर चलो हम माहौल को रंगीन बनाते हैं।
कभी चाँदनी रात को ताकते रहते तारों को,
कभी उत्तेजना से सुर्ख लाल हो जाते हैं।
कभी विशाल जलधि का नीला रंग निहारते
कभी हरियाली के हरे रंग से सुशोभित हो जाते हैं।
फितरत होती जा रही मेरी रंगों से खेलने की
फिर चलो हम माहौल को रंगीन बनाते हैं।
कभी रक्तदान करते हम किसी बीमार के लिए
कभी पीले से प्रेम कर अनुराग पाते हैं।
कभी श्वेत की पवित्रता पे उन्नति पथ पर आगे
बढ़ते हम कभी तीन रंगों से हिन्दुस्तान बनाते हैं।