रंगीला जीवन
रंगीला जीवन
हर तरफ से मायूस इंसा, एक नया जहाँ बनाता है।
कोई मंदिर जाता है कोई चर्च, मस्जिद जाता है।।
ऊँचे अम्बर में उड़ने वाला वो परिंदा
जब घायल होता है तो जमीं पर फड़फड़ाता है।।
अब अंगारों से खेल, जीवन भर मौजों से खेला है।
सबसे कहते फिरते थे, तुमसे कईयों को झेला है।
इश्क ने जब छोड़ा हाथ, फिर रहने को वो ज़िंदा
बहनों के आगे वही हाथ राखी के लिए बढ़ता है।।
मानव तो कठपुतली है, जिंदगी भर लाचार है।
सावन में डूबी हुई, दरिया का एक कछार है।
थपेड़ों से लहराये, जब होकर वो चंगा
ठंडी सुरुर के आगे, गर्मी का बेरहम कड़ाका है।
आदमी तो जी लेता है जब तक वो ज़िंदा है।
इस जीवन का क्या भरोसा, जी उड़ता परिंदा है।
जीवन भर रचाता बसाता गोरखधंधा
पर फंसे अपना तो दोष औरों पर अड़ाना है।।