रखिए समाज से सरोकार
रखिए समाज से सरोकार


हर जन के मिलने से बनता है सामाजिक संसार
उत्कृष्ट समाज हेतु जरूरी सबका आपसी प्यार।
ज्यों श्रेष्ठ स्वास्थ्य के हेतु स्वस्थ हो तन का हर अंग,
विविध वर्ग के सभी जनों का विकास होगा संग-संग,
तब ही सारा समाज विकसित होगा रहेगा न कोई तंग।
एक तन को सब अंग मिलकर संपूर्णता प्रदान करते हैं,
सबकी निजी भूमिका होती वे निर्वहन जिसका करते हैं।
एक कुटुम्ब के सब सदस्य परिवार का हित में में धरते हैं,
ऊंच-नीच भाव न मन में प्रबंध विकास का ही वे करते हैं,
सामाजिक अव्यवस्थाएं दिखती बहकावे में जब गिरते हैं।
जनता के प्रतिनिधि जननेता अजब व्यवहार दिखाते हैं,
कल जो था प्रस्ताव उन्हीं का पर आज विरोध जताते हैं।
वादे चुनाव में जन-जन से किए हंगामा आज दिखाते हैं,
सर्वोच्च संस्था के उच्च सदन में हरकत निकृष्ट कर जाते हैं,
सरोकार समाज से न कुछ स्वार्थ भाव से ही निर्णय लाते हैं।
हृष्ट- पुष्ट हर अंग चाहिए अपना स्वस्थ शरीर बनाने को,
हर परिजन का सहयोग चाहिए उत्तम परिवार चलाने को।
सभी राष्ट्र सशक्त बनेंगे तब ही सारी वसुधा सुख पाएगी,
पारस्परिक समरसता ही मानव को मानवता पथ ले जाएगी,
सबकी सामाजिक सरोकार भावना उत्कृष्ट समाज बनाएगी।