रिश्तों में बस
रिश्तों में बस


रिश्तों में बस औपचारिकता रह गई है
आंखों में बस धुंधली तस्वीर रह गई है
लोग पैसेवालों के ही नजदीक बैठते है,
रिश्तों में बस धन की पैदावार रह गई है
दुःख में सबसे पहले रिश्तेदार दूर भागते है
गैर तो अजनबी होकर भी हाथ थामते है
रिश्तों में बस औपचारिकता रह गई है
अपनेपन की बूंदें तो अकेली रह गई है
फिर भी साखी पत्थरों से सर टकराना है,
बीते सुनहरे लम्हो को याद कर जाना है
रिश्तो में जो कुछ लम्हे हृदय में सो गये है
उन लम्हो को फिर से जिंदा कर जाना है,
अपनेपन की तमन्ना दिल मे ही रह गई है
बुझी रिश्तों की लौ को फिर से जलाना है
अपनेपन को यादकर,बुरे पल भूल जाना है
रिश्तों में लगी दीमक को साखी मिटाना है
रिश्तों में औपचारिकता तब ही बंद हुई है
जब हृदय से हृदय जुड़ाव की बात हुई है।