रिश्ते नाते !
रिश्ते नाते !
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रिश्ते - नाते तितर- बितर हैं
मानो करते 'स्वाहा''स्वाहा'।
भूल गया क्या रिश्ते बुनना
धुन में मगन तूं अरे जुलाहा !
नहीं कहीं वह ताना - भरनी
करघे की वह खट- खट बानी।
कहाँ खो गई झीनी चादर
बनी युगों तक कबिरा बानी।
रिश्ते - नाते शिल्प और थाती
ढोल सुहाने अब हैं लगते |
नहीं है उठती प्यार की वह धुन
इकतारे संग सांझ सकारे।
जिनको "पाना " कहते हो तुम
जिनमें डूबे हो दिन - रात
दुःख के कारण बनेंगे वे सब
कहे "कबीरा" सच्ची बात।