रिश्ता बेटी का
रिश्ता बेटी का


छोड़ कर सारे रिश्ते नाते,
दुल्हन गृह प्रवेश क़र जब आती है,
अल्ता से रंगे लाल रंग की,
छाप घर में बन जाती है।
आगमन से दुल्हन के घर में,
चार चाँद लग जाते हैं,
ढोल नगाड़े से स्वागत कर,
नई बेटी को घर में लाते हैं।
प्यार की उम्मीदों से भरा,
दिल साथ वह लेकर आती है
सज संवर कर रहती हरदम,
घर को भी सजाती है।
नहीं रिश्ता ख़ून का होता,
फ़िर भी ता उम्र साथ निभाती है,
बिना जन्म लिये ही यहॉं,
बेटी घर की बन जाती है।
एक माता-पिता को छोड़ आई थी,
दूसरे यहाँ मिल जाते हैं,
दो परिवारों का प्यार समेटकर,
प्यार भरा गुलदस्ता वह बन जाती है।
अपनी प्यार की पंखुड़ियों से,
दोनों परिवारों को महकाती है।
शादी के बंधन में बंधकर रिश्ता,
ख़ून और प्यार का दोनों वह निभाती है।
प्यार, त्याग और बलिदान की,
मूरत वह कहलाती है,
बेटी तो बेटी होती है
घर को स्वर्ग बनाती है।
बेटी तो बेटी होती है,
घर की लक्ष्मी वह कहलाती है।