रहने दो न छेड़ो
रहने दो न छेड़ो
आलस से लिपटे अहसास को न छेड़ो
सोए है दिल की सेज पर
क्यूँ जगाते हो छुओ ना अधीर मन के
सपने की प्यास बड़ी ज़ालिम
अनुराग की पंखुड़ियाँ बिखर जाएगी
बूँद भर से बुझेगी कहाँ सुराही को बंद
ही रहने दो
जगी हुई जीवन की आग क़ैद है झपकी
की आगोश में
पलना उम्मीद का न झूलाओ
रहने दो न छेड़ो बेपीर बेजुबाँ मेरी चाहत
को नगमों से बेनज़ीर
तेरे जवाँ इश्क की तिश्नगी खड़ी बाँहें पसारे
मेरी निगाहों की दहलीज़ पर
कैसे कुबूल हो ये मोह की मिश्री
तुम नवयौवन में उम्र के उस पड़ाव पे खड़ी
माना मोहब्बत नहीं मोहताज उम्र की होती है
जब कहाँ सोचती है एक पल एक घड़ी
हुई क्यूँ तुम्हें मुझसे मैं बस सोचूं खड़ी खड़ी
थाम लूँ या छोड़ दूँ कशमकश की ये लड़ी
दिल दौड़े मन भागे फुहार रिमझिम सी
चाहत तेरी
भीग लूँ थोड़ी इश्क की आग में लगाई जो
तुमने खूब झड़ी।