रे सजना सिपाही..!
रे सजना सिपाही..!
रे सजना सिपाही मोरे देश के पुजारी
दिन लागे आधा आधा रात लागे भारी
मन के मनाईं कवना खाई के दवाई
सहलो सहाता ना ई नेह के जुदाई
भावे ना इ तीज व्रत गहना न सारी
सुना सुना कोना लागे अंगना दुआरी
बही बही झील भईल नैन कजरारी
दिन लागे आधा आधा रात लागे भारी।।
अंसुवा के धार से लिखले बा हाल जी
रोई-रोई असरा में भईलीं बेहाल जी
छछन छछन जाई निकल सवारी
आ जा छुट्टी लेके घरे, ध के कवनो गाडी
हिय के जुड़ाई दिहा ले के अंकवारी
दिन लागे आधा आधा रात लागे भारी।।
रे सजना सिपाही मोरे देश के पुजारी
दिन लागे आधा आधा रात लागे भारी।।