रचना धर्मिता
रचना धर्मिता
दिल के तारों को सितार सा बजाये
दिमाग का तम्बूरा भी बजा ही जाए
जब रचना ऐसी हो खुद लगता है पता
जिसे पढ़कर पाठक नाचने लग जाए
रोज़ किसी भी कलम से नहीं आती
ऐसी रचना जो हर दिल को है भाती
मैंने भी कोशिश कर के देखीं हजार
हर रचना खुद मुझे ही नहीं लुभाती
कुछ शब्द रचना में बड़े सटीक लगते
कुछ वाक्य भी ज़रा ज्यादा ही हैं फबते
पर कुछ और क्या किया जाए मेरे दोस्त
जब पूरे जज्बात नहीं आते लिखते लिखते
ऐसे में ज़रुरी है जरा सा वक़्त को दें लगाम
कुछ देर रुकें, निपटाएं और कुछ भी काम
फिर से तरोताज़ा होकर बैठें अपनी सीट पर
देखना आपकी कलम फिर करेगी सलाम
अच्छे से अच्छी बातें आएँगी आपके मन में
रचना लाएगी ख़ुशी हर किसी के जीवन में
पाठक हो जाए खुश ये सबसे बड़ा पुरस्कार
बहारें आएँगी देखना फिर से इस चमन में।