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SUNIL JI GARG

Abstract Inspirational

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SUNIL JI GARG

Abstract Inspirational

रचना धर्मिता

रचना धर्मिता

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273


दिल के तारों को सितार सा बजाये 

दिमाग का तम्बूरा भी बजा ही जाए 

जब रचना ऐसी हो खुद लगता है पता 

जिसे पढ़कर पाठक नाचने लग जाए 


रोज़ किसी भी कलम से नहीं आती 

ऐसी रचना जो हर दिल को है भाती

मैंने भी कोशिश कर के देखीं हजार

हर रचना खुद मुझे ही नहीं लुभाती 


कुछ शब्द रचना में बड़े सटीक लगते

कुछ वाक्य भी ज़रा ज्यादा ही हैं फबते  

पर कुछ और क्या किया जाए मेरे दोस्त

जब पूरे जज्बात नहीं आते लिखते लिखते 


ऐसे में ज़रुरी है जरा सा वक़्त को दें लगाम

कुछ देर रुकें, निपटाएं और कुछ भी काम 

फिर से तरोताज़ा होकर बैठें अपनी सीट पर 

देखना आपकी कलम फिर करेगी सलाम 


अच्छे से अच्छी बातें आएँगी आपके मन में 

रचना लाएगी ख़ुशी हर किसी के जीवन में 

पाठक हो जाए खुश ये सबसे बड़ा पुरस्कार 

बहारें आएँगी देखना फिर से इस चमन में।


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