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Ranjeet Jha

Abstract

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Ranjeet Jha

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रावण

रावण

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रावण 

तेरे दस शीश 

कम है

आजकल लोग

सौ चेहरे लगाकर 

घूमते हैं

बदल लेते हैं

कपड़ों की तरह

और हम पहचान नहीं पाते

कब किससे मिले थे

क्या बात किया था 


ढूँढना मुश्किल है

उसी इंसान को

उसी के अन्दर 

दुबारा से


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