मर गया रावण जो जीता था
त्रेता में सताता था मजलूमों को
वह रहता था लंका में ,
हाहाकार मचा दिया धरती पर
मजलूमों का खून पिया तब राम को
आना पड़ा धरती पर मानव का अवतार लिया !
रावण तो था अमर अमृत्व का उसे
वरदान मिला, था नाभि में उसके अमृत भरा ,
रचि लीला राम ने रावण का संहार किया
मार तो दिया शरीर को पर उसके विचारों का क्या किया !
राम ने धर मानव रूप बानरों की सेना के संग
उसका संहार किया ,
मर तो गया वह शरीर से और उसी पल
उसने कमजोर मानव मस्तिष्क में अपना
डेरा जमा लिया अमर था तो अमृत्व को
मानव मस्तिष्क में जीवित होकर पा
लिया !
देखने को मिला तभी से मानव मस्तिष्क
में रावण का नया रूप जब उसने
अयोध्या में एक धोबी के मस्तिष्क में
प्रवेश लिया ,
और ऐसा किया नाच की राम को भी
सीता से अलग होने को मजबूर होना
पड़ा, लिया उसने बदला पाया नहीं जीते
जी सीता को तो उसने राम से भी सीता
को विलग किया !
हम मनाते तो है हर वर्ष रामनवमी और
जलाते हैं दशहरा में उन राम की ही तरह
एक पुतला रावण का ,
पर कभी सोचा है जो अमर तत्व का
वरदान लिए सदियों से बैठा है हमारे
मस्तिष्क में और इस दुनिया का कई बार
विनाश किया उस रावण का आज तक
भला हमने क्या किया !!