रात रानी चन्द्रिका (ग़ज़ल)
रात रानी चन्द्रिका (ग़ज़ल)
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शुभ्र वसना, दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।
तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।
चाँद ने जब बुर्ज से, झाँका भुवन की झील में
झिलमिलाती संग आई, सर्द सजनी चंद्रिका।
पात झूमें पुष्प हरषे, रात ने अँगड़ाई ली
पाश में ले हर कली को, चूम चहकी चंद्रिका।
घन-घनेरे आसमाँ से, छोड़ डेरा छिप गए
जब धरा पर शीत-बदरी, बन के बरसी चंद्रिका।
पर्वतों से वादियों से, पाख भर मिलती रही
सागरों की हर लहर से, खूब खेली चंद्रिका।
प्राणियों में प्रेम बोया, हर किरण से सींचकर
प्रेमियों सँग गुनगुनाई, रात रानी चंद्रिका।
हर कलम की बन ग़ज़ल, शब भर सफर करती रही
शबनमी प्रातः में चल दी, भाव भीगी चंद्रिका।