रात और दिन का फासला हूँ मैं
रात और दिन का फासला हूँ मैं
रात और दिन का फासला हूँ मैं
ख़ुद से कब से नहीं मिला हूँ मैं
ख़ुद भी शामिल नहीं सफ़र में, पर
लोग कहते हैं काफिला हूँ मैं
ऐ मुहब्बत ! तेरी अदालत में
एक शिकवा हूँ, एक गिला हूँ मैं
मिलते रहिए, कि मिलते रहने से
मिलते रहने का सिलसिला हूँ मैं।

