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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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रास्ते का अनुभव

रास्ते का अनुभव

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एक रोज 

अकेला ही निकल पड़ा

उदास, निराश, खामोश

लक्ष्यहीन अनजान राह पर

उलझे विचार डगमगाते कदम

रुका नहीं मुड़ा नहीं, डर से

वही राह वही राही मिलेंगे

बचकर निकला था जिनसे

एक रोता बच्चा बैठा मिला

मिल के पत्थर के उपर

चेहरा अजनबी लेकिन आँसू अपना लगा

उसमें भीगा दर्द अपना लगा

कदम ठिठक गया

उंगली आँसू पोंछने लगी

इधर धड़कन बढ़ने लगी

नन्हे हाथों ने उंगलियाँ पकड़ ली

दोनों साथ चल पड़े

साथ-साथ एक साथ 

एक नई उम्मीद के सहारे

उम्मीद से भरा अच्छा लगा

राह को दूसरे राही का साथ

छोटे और बड़े कदम का साथ

मंजिल जैसा ही महत्व रखता

रास्ते का अनुभव

राह के लिए ,राहगीर के लिए

आज के लिए कल के लिए।



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