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Ajay Singla

Abstract

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रामयण -८;रावण और लंका

रामयण -८;रावण और लंका

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रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण 

तीनों भाई ज्ञानी थे बहुत 

तप किया, ब्रह्मा जी पधारे 

कहा, वर मांगो जो लगे उचित। 


रावण बोलै, वानर और मनुष्य छोड़ 

कोई भी न सके मुझको मार 

कुम्भकर्ण देख, ब्रह्मा सोचें 

ये तो खा जाए संसार। | 


सरस्वती जुबां पर बैठी 

निद्रा मांगी कुम्भकर्ण ने 

छे महीने की निद्रा दे दी 

हरि भक्ति मांगी थी विभीषण ने। 


मयदानव की कन्या मंदोदरी 

रावण ने लिया उसको वर 

त्रिकूट पर्वत पर लंका सुंदर 

दोनों ने वास किया वहां पर। 


लंका की भी कथा निराली 

पहले वहां रहते थे राक्षस 

देवताओं ने युद्ध में जीता 

तब वहां रहे कुबेर और यक्ष। 


रावण युद्ध किया कुबेर से 

पुष्पक विमान था जीत लिया 

राक्षसों को फिर दे दी लंका 

राजधानी घोषित किया। 


रावण इतना बलशाली था  

कैलाश को उठा था लेता 

दिन प्रतिदिन घमंड बढ़ा और  

प्रताप उसका बढ़ता जाता। 


रावण का बड़ा लड़का था जो 

मेघनाथ था उसका नाम 

राक्षसों की सेना लेकर 

चला वो देवताओं के धाम। 


देवगन भयभीत हुए 

सुमेरु पर था आश्रय लिया 

रावण ने फिर अपने बल से 

सारी सृष्टि को आधीन किया। 


जहाँ भी यज्ञ या वेद पाठ हो 

बच न पाए वहां कोई 

साधु संत थे डरने लगे 

पृथ्वी भी भयभीत हुई। 


गौ रूप धारण कर पृथ्वी 

वहां पहुंची जहाँ देव, मुनि 

ब्रह्म लोक में फिर गए सब 

ब्रह्मा जी ने विनती सुनी। 


सबने वंदना की विष्णु की 

आकाशवाणी वहां हुई तब 

मनुष्य रूप धारण करूँ मैं 

हर लूँ तुम्हारे मैं दुःख सब। 


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