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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ३४ सीता खोज में वानर

रामायण ३४ सीता खोज में वानर

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राम ने शिक्षा दी सुग्रीव को

राजनीति का पाठ पढ़ाया

बोले वनवास में गांव न जाऊं

पर्वत पर ही आश्रय बनाया।


मेरा काम रखना तुम ध्यान में

सीता जी का पता लगाना

वर्षा ऋतु गयी, आयी सर्द ऋतु

पर न लगा कुछ पता ठिकाना।


सोचा राज पाठ में पड़के

वो भूला मुझे, मेरे काम सब

क्रोध आ गया था प्रभु को

कहा, उसको दंड मैं दूंगा अब।


लक्ष्मण चढ़ाएं बाण धनुष पर

प्रभु कहें, अब तुम जाओ

मारना नहीं है तुम्हे उसको

बस भय दिखाकर ले आओ।


उधर हनुमान बोलें सुग्रीव को

कार्य भुला दिया आपने राम का

नीति समझाई थी सुग्रीव को

सुग्रीव कहें, बोलो अब करें क्या।


कपि कहें दूतों को भेजो

जहाँ वानरों के यूथ हैं रहते

पंद्रह दिनों में आ जाएं सब

देखें सब अब क्या हैं कहते।


इतने में लक्ष्मण आये नगर में

क्रोध देख सब जहाँ तहँ भागें

कहें नगर जला दूँ मैं

तब अंगद उनके पास आ गए।


क्षमायाचना की अंगद ने

लक्ष्मण कहें , अंगद तू मत डर

सुग्रीव को जब सब पता चला

हनुमान को भेज दिया वहां पर।


कहें तारा को साथ ले जाओ

करो क्रोध शांत लक्ष्मण का

दोनों पहुंचे पास में उनके

सब ने फिर रुख किया महल का।


सुग्रीव प्रणाम करें लक्ष्मण को

उन्होंने सुग्रीव को गले लगाया

दूतों को भेज दिया सब तरफ

हनुमान ने था बतलाया।


राम के पास सभी जन पहुंचे

राम कहें तू भरत समान मुझे

सुग्रीव तुम उपाय कुछ करो

जिससे सीता की खबर मिले मुझे।


वानरों के झुण्ड के झुण्ड आ गए

सबके सब प्रणाम करें हैं

 सुग्रीव कहें सब ओर तुम जाओ

राम का अब हम काम करें हैं।


 महीने भर की अवधि दूँ मैं

तब भी तुम वापिस न आये तो

सबके सब मारे जाओगे

सीता की खबर तुम न लाये तो।


अंगद, नल, हनुमान जाम्ब्बान 

दक्षिण दिशा में भेजे साथ में

बुलाया राम ने हनुमान को

अपनी मुंदरी दी उनके हाथ में।


कहा समझाना सीता को तुम

ये मुंदरी उनको दिखलाना

खबर उनकी जाकर ले आओ

शीघ्र तुम लौट कर आना।


वानर चले सीता की खोज में

राक्षस जो मिलें, मार दें उनको

सीता का हैं पता पूछते

जब मिलते हैं किसी मुनि को।


 घूमते घूमते प्यास लगी उनको

पानी का ना पता ठिकाना

पहाड़ से तब हनुमान ने देखा

सुंदर गुफा का एक मुहाना।


सभी वानर घुस गए अंदर

एक बगीचा, एक तालाब वहां

प्यास बुझाई, फिर सबने देखा

तेजस्वी स्त्री एक बैठी है वहां।


स्वयंप्रभा नाम था उसका

उसको सब वृतांत सुनाया

बोली मैं जाऊं राम के पास अब

प्रेम उनके ह्रदय में समाया।


बोली तुम सब आँखें मूँद लो

और गुफा को छोड़ के जाओ

निराश तनिक भी न हो तुम सब

सीता जी की खबर तुम पाओ।


आँख खुली सब वानरों की जब

समुन्दर तट तब पड़ा दिखाई

राम के पास पहुंची स्वयंप्रभा

राम की अचल भक्ति थी पाई। 


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