राजा उदास है
राजा उदास है
राजा है
राज – पाट है
ठाट – बाट है
फ़िर भी राजा उदास है।
संचित
पुण्यागार है
धन का भंडार है
फ़िर भी राजा उदास है।
दाता है
खुला हाथ है
देने की साख है
फ़िर भी राजा उदास है।
सेवा में
मंत्री गण हैं
संत्री गण हैं
फ़िर भी राजा उदास है।
मुखौटे में
जयचंद पलता है
टूटता विश्वास है
इसी से राजा उदास है।
सन्नाटा
शब्द तोलता है
कोई न बोलता है
इसी से राजा उदास है।
सिंहासन
डोलता है
मौन बींधता है
इसी से राजा उदास है।