राही
राही
मैं तो राही हूँ अपनी मंजिल की,
निरंतर चलते जाना मेरा काम है।
जीवन को गति देना मेरा काम है,
सुनती सबकी करती अपने मन की।
आँखों में हैं ख्वाब कई,
हकीकत में भी सजाने हैं।
कोई साथी ना हो अगर राहों में,
अकेले मुझे ही फासले मिटाने हैं।
छोड़ पदचिह्नों की छाप इस धरा पर,
एक दिन फुर्र से उड़ जाना है।
