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Ajay Singla

Abstract

0.5  

Ajay Singla

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राधा कृष्ण

राधा कृष्ण

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सूर्योदय होते ही बंसी की धुन जब छिड़ जाती है,

नंदगाव की सारी गायें दौड़ी दौड़ी आती है।


होंठों पे मुरली, मुख पर घुंघराले बालों की घटा है,

गाये और ग्वालों के संग, मुरलीधर की निराली छटा है।


शाम ढलने पे सूरज का मन, प्रभु बिछुड़न को नहीं करता है,

पर उसे और बाकी सखा को, अपने घर जाना पड़ता है।


रात होते ही गोपियाँ, सब काम छोड़ के आती है,

मोहन को देखत मानो अपनी सुध बुध खो जाती है।


सब कुछ भूल सखा सखी सब प्रेम रंग रंग जाते है,

कृष्ण सबके लिए फिर, रासलीला रचाते है।


गोपियों संग कान्हा कई रूप बना लेते है,

हर एक के लिए वो अपना, अलग स्वरुप बना ल

ेते है।


गोपियों के नयन भूखे है प्रभु के दीदार के ,

और प्रभु भूखे है उनके प्यार के।


चाँद की शीतलता मन को बहुत भाती है,

पर गिरधर की चंचलता, उस पे भारी पड़ जाती है।


श्याम के मुख का तेज मन का चैन चुरा ले जाता है,

पूनम का चाँद भी, उनके सामने शर्माता है।


माधव के चरणों में, सब कुछ उनका अर्पण है।

नैनन में देखत छवि अपनी, जैसे कोई दर्पण है।


राधा ने कृष्ण को अपने मन में बसाया है ,

नहीं मिले वो उनको, शायद ये भी उनकी माया है।


प्रेम का स्वभाव, इतना सरल और इतना सादा है,

महलों में इतनी रानी है, पर कृष्ण के दिल में राधा है।


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