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नविता यादव

Abstract

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नविता यादव

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प्यार कर पर गुनाह न कर

प्यार कर पर गुनाह न कर

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प्यार को जिस्मानी बना

मजा ले रहे हैं दोनों,,,,

प्यार के नाम पर बन अंधे, दिमाग़ से भी पैदल हो गए हैं दोनों

अपने शौक और जरूरतों के तले,

कितने अबार्शन करवाएं जा रहें हैं दोनों।।


अंधियारे तले एक बीज बोया था किसी ने

एक भ्रूण का गर्भ में आना हुआ इसी में

कुछ हफ़्ते भी न बीते थे,

उसके जीवन में हथियारों से आघात हुआ,,,

अभी कुछ न बना था वो , न कोई रूप ही मिला था उसको

ये अचानक क्यों उसके साथ ऐसा प्रतिघात हुआ।।


ममता क्या होती हैं, ये एहसास उन्हें नहीं है

एक शिशु का जन्म क्या खुशी देता है,ये पता उन्हें नहीं है

पुछो जरा जा के उस "मां "से जो प्रसव पीड़ा सह एक जीवन को जन्म देती है

कभी कभार उस" मां" को जब मजबूरन गर्भपात कराना पड़ता है,

जी जल उठता है उसका आंखे भीग उठती हैं उसकी

दिल और दिमाग़ में एक दर्द जिंदगी भर बना रहता है।।


प्यार करो, सौदा या जिस्मानी खेल न करो

जब जन्म नहीं दे सकते तो,ऐसे काम न करो

जान- जान ही होती है ये समझ लो ,

अपने शरीर और एक कोख में पल रहे शिशु के

साथ कोई खिलवाड़ न करो।।


आज समझ न आयेगा, कुछ सालों में समझोगे

जब शरीर वक्त से पहले जवाब दे जायेगा

नारी हो , ममता की मूरत जानी जाती हो

पढ़ो लिखो, आगे बढ़ो एक मिशाल बन चमको

जीवन देना तुम्हारा कर्तव्य है,,,

इसलिए इस तरह के गुनाह कर

अपनी कोख को बदनाम न करो।।


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