" प्यार कौन सा ?...आत्मिक..."
" प्यार कौन सा ?...आत्मिक..."
प्यार के अनेक रूप हैं,
कौन सा प्यार,
आजीवन रहता है,
यह .....
समझ के परे हो जाता है।
हीर - रांझा, शीरी- फरहाद ने
प्यार में बलिदान दिया था
और अमर हो गए,
इतिहास में उनकी
कहानियाॅं अंकित हो गई।
पर आज का क्या ?
प्रेम, प्यार दिखावा हो गया है,
अब तो अभिभावक की
चलती नहीं,
मर्जी से शादी होती है।
और .....
फिर तलाक,
बाद में,
वही जोड़ा,
अपने दूसरे प्यार के साथ नजर
आते हैं ।
वह प्यार भी
कितना टिकेगा,
वह, हम क्या ?
वे भी नहीं जानते,
क्योंकि यह .....
प्यार नहीं
बाहरी आडंबरों से घिरा,
एक दिखावा है,
जो सुख - सुविधा पर
निर्भर है ।
आजकल शादी के लिए
डेटिंग ऐप खुलें हैं,
देख परख कर शादी करो
फिर भी,
न निभे तो छोड़ जाओ ।
दुनिया ने बहुत
तरक्की कर ली,
शादी के मायने बदल गए,
सात जनम क्या .....
एक जनम भी नहीं निभता ।
प्यार में जीने - मरने की
कसमें तो खाते हैं,
पर .....
समझौते की,
अपनेपन की नहीं खाते।
आजकल शादी की वर्षगाॅंठ
दस, बारह वर्ष
मुश्किल से जाती है,
जिंदगी का फलसफा
बहुत बदल चुका है....
राम - सीता, शिव - पार्वती
की तरह प्रेम में
त्याग, तपस्या कहाॅं संभव है ?
जिंदगी तेज धार से
बही चली जा रही है।
प्यार ....
शारीरिक बन गई है,
सुख, सुविधाओं के बीच
पनपती है,
अपनों से बंधन तोड़ गैरों में
जा मिलती है।
पर ....
उन्हें पता नहीं,
आत्मिक प्यार में कितना
दम है .....
इसमें सौ वर्ष तक का बंधन भी
कम है।
पहले के जोड़े सत्तर, पचहत्तरवें
शादी की वर्षगाॅंठ मना रहे हैं।
सिन्दूर बिन्दी से सज्जित
बुज़ुर्ग महिलाऍं,
और शेरवानी, साफे में सजे
बुज़ुर्ग मर्दों का ....
आत्मिक मिलन हो चुका है....
काश ! ये दुनिया समझ पाती
आत्मिक मिलन का प्यार,
काश ! ये दुनिया समझ पाती
आत्मिक मिलन का प्यार....
