पुच्चु
पुच्चु
मेरी पलकों में पली सपनो से सजी,
इंद्रधनुष के रंगों से रंगी कोई ;
एहसास हो तुम
कहना तो बहुत कुछ है
पर कहने के लिए वो शब्द है, ही नहीं
जिसे मैं अपने प्यार के
धागे में पिरो कह सकूँ
परियां रहती है कहां ?
दिखती हैं ,कैसी ?
देखा नहीं किसी ने पर कहते हैं,
परियों की खूबसूरती का होता
नहीं है कोई जबाब।
बेहद खूबसूरत होतीं हैं ये परियां।
देखा तुम्हे तो मेरी नज़रों को लगा,
गगन के ऊपर से
उतरी प्यारी सी एक परी हो तुम।
अपनी ही खयालों में गुमसुम
तन-मन की थकान थकी
नीढाल_ परेशान थी मै तब भी तुम्हारा पास आकर;
मुझसे आलता अपने पैरों में लगवाने की ज़िद;
फिर आलता लगे पैरों से इतराकर तुम्हे नाचते देख
मेरा अंतर्मन खिल उठा था।
सब सुख तुम्हें मिले,
प्रभु से यह मेरा मूक निवेदन है।