पुरूषोत्तम राम
पुरूषोत्तम राम
बात आए रामायण के तो
राम की कहानी याद आती हैं
हां बहुत ही त्याग हुआ है जो
आंखों में पानी लाती हैं
उनके त्याग की कुछ कहानी
चलो तुम्हें भी बताती हूं
रामायण पढ़ा या सुना तो होगा
कुछ अंश मैं भी तुम्हें सुनाती हूं
माता कभी कुमाता नहीं होतीं
ये बातें हमें भगवान राम बताते हैं
एक पुत्र का फर्ज निभाने के लिए
जो हंसते हंसते वनवास चले जाते हैं
माँ को कभी गलत नहीं कहा
विरोध में भी उनका ही साथ दिया
एक वचन की मान रखने खातिर
अपने माता पिता का साथ त्याग दिया
राजाराम बनने में बस रात की बात थीं
दूसरी सुबह राजतिलक का होना था
धन दौलत की लालसा नहीं मन में
आनंद भरा दिल का
हर कोना था
और फिर वनवास जाकर उन्होंने
हर खुशी का परित्याग किया
अपने भाई को राज्य दिलाने खातिर
राजगद्दी तक को त्याग दिया
भरी सभा के सामने उन्होंने
आखिर दिल जिनका जीता था
वो आम नहीं लाखों में एक थी
और नाम उनका सीता था
नगरवासियों का दिल रखने खातिर
उनसे अग्नि परीक्षा का मांग किया
प्रजा का राजा बन जाने खातिर
अंत में सीता का साथ त्याग दिया
होनी अनहोनी का पता था उनको
पर हमें मानवता का पाठ पढ़ाना था
अरे वो तो साक्षात भगवान थे पर
जीवन जीने का तरीका बताना था
इन्सान का रूप लिया था उन्होंने
इसलिए एक नया मिशाल बना दिया
पुरुषोत्तम राम कहलाने के लिए
भगवान का नाम त्याग दिया।