Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

4.4  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

पुरुषों की स्थिति

पुरुषों की स्थिति

1 min
253


इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है

फूल होकर भी शूलों में होती गिनती है

बाहर से पत्थर,भीतर से फूलो का शहर,

फिऱ भी सब कहते वो तो कठोर मति है


वो अपने सीने का दर्द हँसकर छिपाता है

ज़मानेवाले समझते वो हंसती जिंदगी है

इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है

पुरुष दरिया में होकर भी सूखी लकड़ी है


कोई भी शख्स उसको समझ न पाता है

वो उजाले में रहकर भी अंधेरा ही पाता है

वो अपनों के लिये पत्थर सा होकर भी, 

जलता और पिघलता बनकर मोमबती है


इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है

आंख में नीर होकर भी सूखी जिंदगी है

कब तलक यूँ जीवन भूखा चलता रहेगा,

वो सबकुछ करके भी भूखा सोता रहेगा


माना सब कर चुप रहना उसकी प्रकृति है

पर बिन दिखावे न दिखती आज रोशनी है

पत्थर हृदय है वो पत्थर ही बना रहेगा,

अब न वो छिप-छिप अक्षु बहाता रहेगा,


वो पुरुष है,वो एक शमशीर है जुगनू की,

वो अब तम की निशा को मिटाता रहेगा

जो कोई भी अब उसका अपमान करेंगे,

अब सबसे वो गिन-गिन बदला लेता रहेगा


पुरुष ख़ुदा की दी हुई एक मजबूत कड़ी है

वो नहीं कोई समय की कोई टूटी घड़ी है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract