"पुरुषार्थ"
"पुरुषार्थ"
जाग मानव, कब तक सोयेगा,
कब तक अपने, भाग्य पर रोयेगा।
ब्रम्हा से लिखवा कर,
हम नहीं आयें।
जो कुछ भी है पास,
निज भुज बल से पायें।
कठिन कर्म से,
दुविधा की बेड़ियां करती है।
करें प्रयत्न तो,
परेशानियां हटती है।
क्या लाया था, जो तू खोयेगा,
कल वो ही पायेगा, आज जो बोयेगा।
जाग मानव, कब तक सोयेगा,
कब तक अपने, भाग्य पर रोयेगा।।
