पुराण कहाँ ये..
पुराण कहाँ ये..
है अचरज आश्चर्य बहुत बड़ा
समय-समय पर करता सवाल हमेशा खड़ा
बीत जाए कितने सहस्त्राब्दियाँ
बनकर उभरती रही अजब गजब कहानियाँ
है ज्ञात हमें ..हैं ये अति पिनाक प्राचीन
होता चला आ रहा वो फिर भी नित नव नवीन
एक सौ आठ उपनिषद, चार वेद...
अठारह पुराण, छह शास्त्र साठ नीतियाँ...
सूक्ष्मता से स्पष्ट करती जा रही कितनी भी हो भ्रांतियाँ
नित नव कलरव कुंजन कर रहे इन ग्रंथों के पवित्र शब्द
प्रमाणित हुआ जब साक्ष्य ..समाज हुआ तब तब निःशब्द
कर जाते आत्मा को तृप्त संतुष्ट और अत्यंत मीठा
है विराजे जो "रामचरितमानस" में चौपाई ,छंद ,सोरठा
झकझोर देता ..कभी जटिल विधा पर ..जो है टिका..
पार्थ अर्जुन को मिला उपदेश जो कृष्ण ने कर दिया सबको फीका
है यह अति प्राचीन सनातन धर्म के पवित्र अमिट धरोहर
नित्य नवसृजन में चमक रहा... युगों- युगों पहरों पहर..
