पत्रकारिता
पत्रकारिता


पत्रकारिता चढ़ नेता के कंधे पे बैठी है,
पैसा फेंको, ख़बरनवीसी धंधे पे बैठी है।
कहीं डरा धमकाकर मिल जाता है पैसा,
कहीं किसी काले पैसे के चंदे पे बैठी है।
मुद्दा गर नहीं मिलता तो बनाया जाता है,
जन-मानस, ख़बरों से भरमाया जाता है।
पत्रकारिता मरी नहीं परन्तु मरण-हार है,
लटकेगी कभी सियासती फंदे पे बैठी है।
इच्छा होती है ख़बर न ही अब कभी सुनें,
द्रष्टव्य खबर को देखो तो दर्शक ही चुनें।
पत्रकारिता बहरी थी कि झूठ न सुन सके,
सियासत अंधी औ' वो इस अंधे पे बैठी है।
पत्रकारिता जब तरफ़ ले यानि वो मर गई,
कि क़लम ज़िम्मेदारी निभाने से मुक़र गई।
मुर्दा ख़बरों ने ज़मीर को जकड़ के है रखा,
ये मुर्दा खबरें ज़हन में हर ज़िंदे के बैठी है।