पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
अक्सर जब कभी भी मैं उसके ख्यालों में खोया रहता था
दिल की रोती कलम से , कागज पर दर्द लिखता रहता था।
हंसता कागज ही नहीं अक्सर , रजनी में सोते वक्त तेरी याद
में आंसुओ से भीग जाते थे ,आशियाने जब मैं रोता रहता था।
लिखे जो रक्त की धारा से खत तुझे , आज भी महफूज है।
दिल ही बिखरा था ईश्क की, धड़कने आज भी महफूज है।
अक्सर तडफता हूं काश तुझे वो खत दे दिया होता तो अब
कर देती इनकार तू , गजले इजहार की आज भी महफूज है
हे ! मेरे खुदा तेरे दर पर आज रोता हुआ आशिक आया है।
खोया हुआ इश्क में और प्यासा दीदार का परिंदा इक आया है
दे दे उसे उसके महबूब के मिलने की तस्सली, बस एक इसी के
लिए तो वो दिल की मौत को मात देकर , आज तेरे पास आया है
मिले हर किसी को हर आशिक के लिखे खत के पैगाम जो।
है दुआ रब से यही हो रोशन, वो ईश्क की हो हर शाम जो
ना छूटे मेरी तरह महबूब किसी का, किसी की मोहब्बत से
नहीं मेरा ठिकाना ही तय है, वो कहलाता हैं कब्रिस्तान जो ।

