Dr. K.Anitha
Classics Fantasy Inspirational
किसी की लड़की है,
बहू बन कर आती हैं,
पत्नी बन जाती हैं,
मां बन कर ससुराल को
संभालती हैं,
घर की मालकिन बनती हैं,
घरवालों की खुशी के लिए,
अपने आप को भूल जाती हैं,
सहनता की प्रतिरुप बनती हैं,
सब की खुशी,अपना समझती हैं।।
सोच
कबीर
नई साल
पत्नी
खाना
मन
हिन्दी
धर्म
कलम
मित्र
रिश्ते बनाते देखा है रिश्ते बनाते देखा है
है ठीक यहाँ तक कि, हम खुद पर चर्चा करें लोग अपनी महफ़िल चर्चे दूसरों के चलाते हैं। है ठीक यहाँ तक कि, हम खुद पर चर्चा करें लोग अपनी महफ़िल चर्चे दूसरों के चलाते...
सबकी खुशी में उनकी खुशी इसी कारण तो पिता कहलाता है। सबकी खुशी में उनकी खुशी इसी कारण तो पिता कहलाता है।
दान की लोभ पर योग की रोग पर संयोग की वियोग पर विजय निश्चित है। दान की लोभ पर योग की रोग पर संयोग की वियोग पर विजय निश्चित है।
है मेरे भारत की शान अनूठी जिसने हर मिसाल का निर्माण कर लिया। है मेरे भारत की शान अनूठी जिसने हर मिसाल का निर्माण कर लिया।
कभी भगवान तक पहुँचने का जरिया तो कभी उसकी जुबान। कभी भगवान तक पहुँचने का जरिया तो कभी उसकी जुबान।
प्रेम की धुन बजा दो ओ कान्हा मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा। प्रेम की धुन बजा दो ओ कान्हा मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा।
नादानी कहकर टाल देते हैं नादानी कहकर टाल देते हैं
डरना किस बात का है, जब कोई हो ना हो, लेकिन खुद की परछाइयााँ खुद के साथ हो। डरना किस बात का है, जब कोई हो ना हो, लेकिन खुद की परछाइयााँ खुद के साथ हो।
पर आशावादी है मेरा मन मेरा अनुयायी है। पर आशावादी है मेरा मन मेरा अनुयायी है।
गाँव का त्योहार याद आ रहा है मुझे अब गाँव याद आ रहा है। गाँव का त्योहार याद आ रहा है मुझे अब गाँव याद आ रहा है।
अनजान सफ़र, अनजान मंज़िल का, जाना/पहचाना राही। अनजान सफ़र, अनजान मंज़िल का, जाना/पहचाना राही।
तू उन्हें अपनापन तब देती है जब वो मेरे से रूठ जाते है तू उन्हें अपनापन तब देती है जब वो मेरे से रूठ जाते है
तुम को, बस खाना, बनाना है, उन उपलों से क्या जानो, किस प्रेम से, उपजे हैं तुम को, बस खाना, बनाना है, उन उपलों से क्या जानो, किस प्रेम से, उपजे हैं
ठान लिए हम वापसी मंजिल का तो पता नहीं। ठान लिए हम वापसी मंजिल का तो पता नहीं।
दिल सुनता संगीत यही है, जीवन का गीत यही है..! दिल सुनता संगीत यही है, जीवन का गीत यही है..!
ना बन जाना और मैं "मैं" ना हो जाऊँ। ना बन जाना और मैं "मैं" ना हो जाऊँ।
भीड़ के कंधो पे, वो लाश भी न उठ सकी भीड़ के कंधो पे, वो लाश भी न उठ सकी
एक व्यक्ति दूसरों की सेवा में खुद को खो देना है। एक व्यक्ति दूसरों की सेवा में खुद को खो देना है।
कुछ मुख मैं, कुछ लिए हाथ मैं, मुझे खिलाने आई थी। कुछ मुख मैं, कुछ लिए हाथ मैं, मुझे खिलाने आई थी।