पतझड़
पतझड़
नहीं ख़ौफ़ पतझड़ का मुझको
नहीं कोई तकलीफ़
यह भी एक मौसम है
जल्द जाएगा बीत।
फूटेंगी फिर नई कोपलें
है यही उम्मीद
पतझड़ भी एक मौसम होगा
देगा नई सीख
विपदाओं से लड़कर जीवन
कैसे जीते हैं दोबारा।
नई उमंगें ,नई आशाएँ
दस्तक देंगी
यह भूल नहीं तुम जाना
कितनी भी कठिन घड़ी हो फिर भी
कभी नहीं घबराना।
लाख ठोकरें खाकर भी
हरदम आगे बढ़ते जाना
सीखों उन वृक्षों से
जिनकी सूख गई हरियाली
तन कर फिर भी खड़े हुए हैं
आएगी फिर से हरियाली।
वृक्ष की सूखी डाली
जो पहले लगती थी ठूंठ
हौसला था बुलंदी पर
नहीं हुई कभी मजबूर
आए गए तूफान कई
कोई उसे ना हिला पाया
डटकर करता रहा सामना
लौटा ख़ुशियों का पुनः जमाना।
ठूंठ नहीं अब नज़र आता है
हरा भरा वृक्ष लहराता है
फूलों फलों से लदा हुआ
अनुभवों से मंजा हुआ
उम्मीदों से भरा हुआ
स्वयं में विश्वास दिखाता
ख़ुशियों को दोहराता सुदृढ़ और समृद्ध वृक्ष
बहुत कुछ कह जाता है
जीवन जीना सिखला जाता है।।