पति का बटुआ
पति का बटुआ
रहता जिसका बटुआ भारी,
उस पति को कहते मरवाड़ी,
सेठ भी कहते उसको लोग,
पत्नि करती धन का भोग,
चाहें जितना धन उड़ायें,
पर बटुआ नहीं खाली पायें।
कभी खाली, कभी बटुआ भारी,
करते ये नौकरी सरकारी,
वेतन के ज्यों दिन है आता,
बटुआ नोटों से भर जाता,
धीरे धीरे खाली हो जाता,
पत्नि पर संकट घिर जाता।
कभी खाली, कभी रेजगारी,
भोग रहे हैं ये बेकारी,
काम मिला कुछ पैसा पाये,
नहीं मिला खाली हाथ आये,
पत्नि पर आकर गरमाये,
रूखा-सूखा भोजन खाये।
पाॅकेट से कुछ काम चलाते,
ये जन निर्धन हैं कहलाते,
बटुआ हेतु चाहिए पैसा,
इनका बचत नहीं है वैसा,
नहीं पाते ये पैसा इतना,
बटुआ हेतु चाहिए जितना।
भारी बटुआ सुख व भोग,
खाली बटुआ संकट योग,
जिनका बटुआ रहता भारी,
चहकती उनकी घरवाली,
जिनका बटुआ रहता खाली,
पेट न भरती उस घर थाली।
धन से बटुआ का है अर्थ,
धन नहीं तो बटुआ ब्यर्थ,
कर्म से धन का उपार्जन,
बिना कर्म नहीं मिलता धन,
बटुआ कर्मठ का प्रतीक,
घरवाली नहीं करती दिक।
