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DEVSHREE PAREEK

Abstract

4  

DEVSHREE PAREEK

Abstract

पता नहीं क्यों ?...

पता नहीं क्यों ?...

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कौन दिशा

कौन डगर

मैं चली जा रही

बेखबर

कोई साया

आगे -आगे

मैं बेसुध- सी

पीछे -पीछे

जाने वो,

कौन है ?

क्या है ?

क्यों है ?

पर हाँ,

मैं

उस साये के

पीछे हूँ…

जाने किस

मंजिल पर

पहुँचना है उसे

जाने किस

दिशा का

वो है रहगुज़र

कुछ कशिश है जो

मैं मोहपाश में

बँधी जा रही हूँ…

चली जा रही हूँ…

वह कहता कुछ नहीं

मगर एक खामोशी

मैं डूबी हूँ जिसमें

छाई मुझ पर बेहोशी

हाँ, ये खामोशी

मुझमें सिमटती

जा रही है…

कोई गुमनाम -सी

सदा

जाने किस तरफ से

आ रही है…

मैं घबरा रही हूँ

फिर भी

चली जा रही हूँ…

पता नहीं क्यों ?

पता नहीं क्यों ?


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