प्रवासी बन गया वो
प्रवासी बन गया वो
जूते बनाने वालो के पैरो में छाले हैं,
घर बनाने वाले आज सड़क के सहारे हैं।
अपने गांव से चलकर शहर की चकाचौंध में आया था वो,
कुछ काम मिलेगा, घर गुजर होगा शायद यही सोच कर अपना घर छोड़ आया था वो।
संभल ना सका जो, थक के लौट रहा जो, प्रवासी बन गया वो।
गिर के टूटा, वक्त से रूठा,
शहर का भी मोह छूटा,
दिशा बदली, राह पकड़ी, एक बार फिर चल दिया वो।
ना रेल मिली, ना गाड़ी मिली, पटरी पगडंडी बनी,
कटकर बिछ गया फिर भी हार ना मानी।
जंगलों से गुजरा, बेनाम सड़कों पर सोया
सवेरा उसका तब भी नहीं हुआ,
सेवरा उसका आज भी नहीं आया।
यह कैसा जुनून है, इस भूख का,
जो भी मिला बस मजबूर मिला।