प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
आ,
तू रात के खाली पैरों में
बाँध दे
कुछ रुनझुन से
लम्हों की पायल।
खनका दे अहसासों की
रंग-बिरंगी चूड़ियाँ
कोरी सी शाम की
सुनी कलाई में,
और खाली-खाली सी
बैठी चाँदनी के अधरों पे
रख दे एक गुनगुनाता
रात रानी का नगमा।
तू भूल गया न
उदास राहों पे
बिखरी भोर अब भी
वहीं ओस के फूल
चुनती है।
उसे लौटा दे
हरसिंगार के झरते
सुनहरे सपनों की डलिया।
बोझिल पलकें पे
दुपहरी की
किसी घड़ी तो आके
उच्छ्वासों का
चंदन सजा दे।
वो देख न,
रैना द्वार खड़ी है तेरे
तू आगोश में ले
और अपनी गोदी में
उसे कुछ पल
सुला ले।
हथेली में रख ख्वाबों के
टिमटिमाते जुगनू,
अब बस आकाश में
उन्हें तारों संग सजा दे।
खालीपन के शोर से
भरा है दिल का मकाँ,
जरा बाँसुरी नेह राग की
मुझे सुना और थोड़ी
तू भी संग मुस्कुरा ले।।