प्रकृति
प्रकृति
प्रकृति के रूप अनेकों
समय समय पर दिखलाती,
कभी खुशी से भर दे मन को
कभी यह रोद्र रूप दिखाती।
कई रंगों के फूल खिले हैं
कभी सर्दी कभी बरसात आए,
कभी सावन करे विभोर
कभी उपवन में बसंत मदमाए।
पतझड़ मन को दर्द दे जाती
लेकर आती फिर बसंत उपहार,
मौज मस्ती में झूम उठे मन
जब आती है ऋतु बसंत बहार।
कलकल बहते नदियां, झरने
खड़े पहाड़ बर्फ शृंगार लिये,
अलि पुष्प रस पी पी मस्त
लगे नशा चढ़ा बिना ही पिये।
केदारनाथ का मंजर देखो
प्रकृति ने रोद्र रूप लिया
प्रकृति की प्रवृत्ति अजीब
तबाही का विषपान दिया।
गुजरात का भूकंप लाया
प्रकृति तबाही का वो मंजर
देख प्रकृति का कुरूप चेहरा
दिल में उतर गया था खंजर।
हंसती जब प्रकृति है तब
हंसता नजर आता जन चेहरा
जब प्रकृति बिगड़ जाती है
कर जाती जग विनाश भतेरा।
