प्रकृति
प्रकृति
मेरे आस पास बिखरी हरियाली
पेड़ पौधे व प्रकृति
मैं तुम से अलग तो नहीं
बचपन में बेंत की बुनी डलिया में
जब रंग बिरंगे फूल चुनती
तब प्रसन्नता से सराबोर
श्रद्धा व भक्ति से आच्छादित
तुम मेरे साथ होती
खूबसूरती से सजी धजी
रंगों की छटा बिखेरती
मुस्कुराती खिलखिलाती
तुम से अलग कहा थी मैं!
बड़े होने पर
खूबसूरत हरी भरी वादियो का
चुनाव करते वक्त भी
मैं तुम से अलग नहीं थी
तुम मेरे साथ ही तो थी
मेरी चाहत में
मेरे मानस में
तुम ही तो थी
कभी घास की चादर में
कभी ऊंचे ऊंचे पेड़ों में
सूरज की किरणों में
लुकाछिपी का खेल खेलते
तुम मुझसे अलग तो नहीं थी
फूलों से लदी क्यारी
फलों से लदे पेड़
मेरी खुशी मेरा आनंद
मेरा सुख मेरी शांति
कुछ भी तो अलग नहीं है तुमसे
तुम से जुड़ी मैं
मुझ से जुड़ी तुम
मैं तुम से अलग तो नहीं।
