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Rekha Agrawal (चित्ररेखा)

Abstract Classics Fantasy

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Rekha Agrawal (चित्ररेखा)

Abstract Classics Fantasy

झूला

झूला

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झूला झूलते बच्चे

आसमान छू लेने की जिद

फिर धरती के पास जाकर

कदमों की थाप पर

फिर एक बार ऊँचा… और ऊँचा…

अंतहीन ऊँचाई को पाने की चाहत


यही तो है नन्हा सा मन

आस की डोर पर सवार

धरती से आसमान की सैर पर

कभी भी निकल पड़ता है

बिना जाने बिना बूझे


आँखों में सतरंगी ख्वाब लिए

ऊंचे से मजबूत वृक्ष के तने से

बंधी आस की डोर

माटी के भीतर

मजबूत जड़ों से आधार


कदमों की थाप के सहारे

धरती से सहारा लेकर

पींगे बढ़ाता

जिंदगी को करीब से छूता

पवन से बातें करता


सपनों के साथ

यथार्थ से कदम मिलाता

 झूला चलता रहता है।


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